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अध्याय ३ - प्रयोजन प्रकाश

|| प्रयोजन प्रकाश ||||
|| राग मालकोंस |||
|| मधुभार-छन्द |||

गूढ़ इक काज |
सबद लै साज |
छुपे नट राज |
चीन्ह सुसमाज ||१| ||विश्राम||

अनुवाद: किसी गूढ़ कार्य की सिद्धि के निमित्त इस शब्द की रचना की गयी है | एक छुपे हुए नटराज हैंहम चाहते हैं की सज्जनों का समाज उन को जान ले ||१| विश्राम ||

कृष्ण अवतार|
चीन्ह जग सार|
कृष्ण बलराम|
सुनैं सब नाम|||

अनुवाद : भगवान् कृष्ण (के नाम तथा लीला आदि) से जग में प्राय: सभी मनुष्य परिचित हैं| प्राय: सभी ने ही कृष्ण तथा बलराम जी का नाम सुन रखा है||

वेद परमान|
करैं गुनगान|
सुनैं सब लोक|
भजैं तज सोक|||

अनुवाद : वेद-पुराण उनका (प्रकट रूप रूप से) प्रमाण प्रस्तुत करते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं| उसको सुन कर सभी (भाग्यवान जन) सब प्रकार से शोक का त्याग करके उनका भजन करते हैं||

गौर भगवान|
कृपा परवान|
नाम परचार|
छन्न अवतार|||

अनुवाद : (किन्तु उन्हीं कृष्ण ने ही) श्रीहरिनाम-संकीर्तन का प्रचार करने के लिए ही कृपा के धाम गौरांग भगवान् के रूप में छन्न अवतार (छुपा हुआ अवतार) धारण किया||

सबै गुन खान|
कोउ नहि जान|
चीन्ह नहि लोक|
रिदै बर सोक|||

अनुवाद : सभी गुणों की खान होने पर भी गौरांग महाप्रभु महिमा की महिमा से अधिकाँश लोग परिचित नहीं हैं| इस कारण से हमारे ह्रदय में बड़ा शोक है||

कृष्ण पद दास|
करै परकास|
सोकहिं निवार|
ग्रन्थ प्रकटार|||

अनुवाद : कृष्ण दास इस बात को प्रकाशित करते हुए कह रहे हैं की उस शोक का निवारण करने के लिए ही श्रीपंचतत्त्व चालीसानामक ग्रन्थ का प्राकट्य हुआ है||

प्रकाशिका वृत्ति नामक टीका : छन्न अवतार: उपर्युक्त छन्द में गौरांग महाप्रभु को छन्न अवतारकहा गया है| छन्न का अर्थ हैछुपा हुआ अवतार|
भगवान् कलियुग में छन्नरूप में क्यों प्रकट हुए?– भगवान् ने श्रीमती राधारानी के ह्रदयगत भावों का स्वयं आस्वादन करने के लिए ही श्रीराधिका के भावों को स्वीकार कर के अवतार लिया था| यदि भगवान् के लीलाकाल के समय उनकी भगवत्ता साधारण व्यक्तियों के समक्ष प्रकाशित हो जाती तो सभी उनको भगवान् मान कर के उनकी आराधना करते| ऐसे में उन्हें राधिका जी के भाव-रसास्वादन करने में विघ्न पड़ता| (अपने आप को राधिकाके भाव में प्रतिष्ठित करने के लिए उन्हें यह भूलना पड़ता है की वह स्वयं भगवान् कृष्ण हैं| कृष्ण ने अपनी शक्ति योगमाया को यह सामर्थ्य प्रदान किया है की कृष्ण की इच्छा के अनुरूप योगमाया उनको उनकी भगवत्ता का स्मरण अथवा विस्मरण करवा सकती हैं|)
वे किस वस्तु से आच्छादित (ढके हुए) हैं?– वे श्रीमती राधा के ह्रदयगत भाव तथा उनकी अंगकांति (शरीर के गौरवर्ण) से ढके हुए साक्षात श्यामसुंदर ही है (तार गौर कान्तये तोमार सर्व अंग ढकाचै॰च॰ २/८/२६९)