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अध्याय ४ - निरूपण प्रकाश

|| निरूपण प्रकाश ||||
 || राग देस |||
|| कुण्डलिया-छन्द |||

ब्रज अवधी रचना करी
टीका सरल बनाय|
बृहद ग्रन्थ नाही कियो
सब जन सुखहिं बुझाय|||

अनुवाद : इस ग्रन्थ के मूल छन्द इत्यादि की रचना प्रमुखतः ब्रज तथा अवधी में हुई है तथा अनुवाद और प्रकाशिका-वृत्तिनामक टीका को बहुत ही सरल शब्दावली में लिखा गया है| इस ग्रन्थ को बहुत विस्तृत नहीं किया गया ताकि सभी वर्ग के व्यक्तियों को आसानी से समझ में आ सके||

सब जन सुखहिं बुझाय
गौर जू को आराधें|
पंचतत्त्व को जान
प्रेम से सेवें साधें|||

 अनुवाद : यदि इस ग्रन्थ की वाणी सभी को आसानी से समझ में आएगी तभी तो वे लोग गौरांग महाप्रभु की आराधना करेंगे एवं पंचतत्त्व के बारे में जान कर के प्रेमपूर्वक उनके प्रति सेवा-साधना करेंगे||

कलि महि जो ना चीन्ह
गौर रस को नौ नवधी|
तिनि कारन रच दीन्ह
कथा हिंदी ब्रज अवधी|||

अनुवाद : कलियुग के जो लोग गौरांग महाप्रभु के कथा रस रूपी नौ-निधि से अभी तक वंचित हैं, उन्ही के लिए ही हिंदी, ब्रज तथा अवधी में इस ग्रन्थ की रचना की गयी है||

प्रकाशिका वृत्ति नामक टीका : यह पुस्तिका गौड़ीय वैष्णवसम्प्रदाय के सिद्धांतों को अत्यंत सारगर्भित एवं सरल शैली में प्रस्तुत करती है, अत: सामान्य जन के लिए इस पुस्तिका में लिखित सिद्धांतों को समझना सरल है| इस पुस्तिका को यदि नव-गौड़ीय-वैष्णव-सहायिकाकहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी| वस्तुत: प्रारम्भिक अनुशीलनकारियों को चैतन्य भागवतएवं चैतन्य चरितामृतजैसे बृहद महाग्रंथ का पठन करना एवं समझना कठिन प्रतीत हो सकता हैऐसे लोगों के लिए यह पुस्तिका सहायक होगी| किन्तु जैसे-जैसे रूपानुग साधक भक्तिपथ में आगे बढ़ते हैं, उन्हें पुरातन एवं नवीन आचार्यों द्वारा लिखित बृहद ग्रन्थ भी पढने चाहियें|

 || राग देस |||
|| दोहरा छन्द |||

द्वादस छन्द प्रकास हैं
ग्रन्थहिं खंड विधान|
पंचतत्त्व परकासिहैं
द्वादस सूर्य समान||| विश्राम ||

अनुवाद : इस ग्रन्थ में द्वादश (बारह) प्रकाश हैं जो इस ग्रन्थ को बारह अध्यायों में विभाजित करते हैं| ग्रन्थ की रचना में बारह प्रकार के ही छन्द का प्रयोग किये गए हैं (जिनमें बारह तत्त्वों का वर्णन हुआ है| छन्दों के गायन के लिए भी बारह प्रकार के ही विभिन्न रागों का निर्देश दिया गया है)| ऐसा जान पड़ता है जैसे श्रीपञ्चतत्त्व की महिमा को प्रकाशित करने के लिए सभी बारह खण्डों, बारह छन्दों एवं बारह रागों के रूप में द्वादशादित्य (सूर्य के बारह स्वरूप) आकाश में एक साथ उदित हो गए हों|| ||विश्राम||

प्रकाशिका वृत्ति नामक टीका :
बारह प्रकाश इस प्रकार हैं मंगलाचरण, निवेदन, प्रयोजन, निरूपण, समर्पण, गौरांग चालीसा, नित्यानंद चालीसा, श्रीअद्वैत चालीसा, श्रीगदाधर चालीसा, श्रीवास चालीसा, उपसंहार, फलश्रुति| बारह छन्द इस प्रकार हैंदोहरा, रोला, मधुभार, कुण्डलिया, चौपाई, मनहरण घनाक्षरी, भुजंग प्रयात, छप्पय, हरिगीतिका, मनमोहन, मनोरम एवं सवैय्या|
बारह प्रकार के राग इस प्रकार हैं कलावती, श्री, रागेश्री, देस, दरबारी, गौती, यमन, जनसम्मोहिनी, ललित, शिवरंजिनी, मेघ-मल्हार, मालकोंस|
इस ग्रन्थ में बारह तत्त्वों का स्पर्श किया गया है गुरु-तत्त्व, वैष्णव-तत्त्व, सखी-तत्त्व, राधाकृष्ण-नाम-धाम-तत्त्व, निताइ-गौर-नाम-धाम-तत्त्व, माया-तत्त्व, जीव-तत्त्व, नित्यानंद-तत्त्व, गौरांग-तत्त्व, अद्वैत-तत्त्व, गदाधर-तत्त्व, श्रीवास-तत्त्व|

|| रोला छन्द ||

सूरज को परकास
सबै लोकन हित को है|
ऐकस सब को देत
भेद नाहीं किछु को है|||

अनुवाद : सूर्य का प्रकाश सभी लोगों के हित के लिए है| वह सब को एक जैसा ही प्रकाश प्रदान करता हैकिसी में  कुछ भी भेद नहीं करता||

तैसे ही यह ग्रन्थ
सबै सुभ चिन्तन साधे|
गौर प्रेम को देत
कटैं माया के बाधे|||

अनुवाद : उसी प्रकार से यह ग्रन्थ प्राणी मात्र का शुभ चिंतन करता है, किसी में भी भेद नहीं करता| सब को गौरांग महाप्रभु के प्रति दास्य-प्रेम का दान करता हैप्राणी मात्र के माया के बंधन को काटता है||

प्रकाशिका वृत्ति नामक टीका : सभी मनुष्य इस ग्रन्थ को पढ़ने के अधिकारी हैं| अत: इस ग्रन्थ को किसी विशेष पंथ, सम्प्रदाय, जाति, वर्ग अथवा धार्मिक संस्था की परिधि में सीमित नहीं करना चाहिए| श्रील भक्तिविनोद ठाकुर स्वरचित कृष्ण-संहिता (८/२२) में लिखते हैंसम्प्रदाय विरोधोSयं दावानलो विचिन्त्यतेसाम्प्रदायिक अथवा संस्थागत संकीर्णता ही दावानल का रूप धारण कर लेती है जिसके कारण वैष्णव-साधक अपनी संस्था से बाहर किसी दूसरे वैष्णव का न तो संग कर पाते हैं और न ही किसी उत्तम भक्त को गुरु के रूप में वरण कर पाते हैं|