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पञ्चतत्त्व चालीसा 
|| मंगलाचरण प्रकाश ||||
||श्री-राग|||
||मनमोहन-छन्द|||| मंगलाचरन गीत रतनगावउ सब मिल सहित जतन|| ||विश्राम|| ||दोहरा-छन्द |||| || श्रील गुरुदेव-प्रणति |||| प्रथमहि सिमरहु गुरु चरण पुनि पुनि हैं परनामजिन के सिमरन होय ते मिटहिं सबहि जग त्राम||शिक्षा गुरु सिमरन करूं हरि स्वरूप तिनि जानगौर कथा को तुम धनी हम कंगाल समान||श्रीब्रह्म मध्व चैतन्य सम्प्रदाय को धारजो गुरु हैं अरु होयगें तिनि परनाम हमार||पंगु गिरि लंघ जाय हैं मूक बनैं वाचालमूरख कवि बनि जाय हैं जिस के गुरु प्रतिपाल|||| || वैष्णव-प्रणति |||| दण्डउ वैष्णव पद कमल जाकउ सिमरन नीकदरसन ते अघ को हरें तिनि रज माथे टीक|||| षडगोस्वामी-प्रणति |||| रूप सनातन जीव पद दास भट्ट रघुनाथश्रीगोपालहि सिमर के सबहि निवावहुं माथ||यवन त्रासहिं लुप्त भयो सब लीला अस्थानसो इन सबहिं प्रकट कियो ग्रन्थ रसामृत गान|||| इष्ट-प्रणति |||| श्रीनिताइ अरु जाह्नवा जिन पद मेरो साधभव तरिहैं जिन मिलि गयो पावहिं प्रेम अगाध|||| पंचतत्त्व-प्रणति |||| दण्डवउ पञ्चतत्त्व को पाँचहु मेघ समानकीर्तन रस वर्षण करें सब पे कृपा निधान||भक्तहिं रूप स्वरूप तिनि और भक्त अवतारभक्त स्वयं तिनि की शक्ति पंचतत्त्व को सार|||| श्रीतुलसी-प्रणति |||| धरयो जिन के नाम पे हरि निज धामहि नामसो तुलसी पद कमल में बारम्बार प्रनाम|||| श्रीराधाकृष्ण-प्रणति |||| दण्डउ राधा-कृष्ण जू सांचो साहिब ऐकरतन वेदि पे साजि के लीला करैं अनेक|||| श्रीसखी-प्रणति |||| दण्डउ सखियन जूथ को मंजरियन पद द्वन्दपद रज कन जिस सिर परै पावहिं रस मकरन्द|||| श्रीनाम-प्रणति |||| प्रणमहु नामहिं आपको कलि में हरि अवतारजो हरि सो ही आप हैं करैं जगत निस्तार ||
|| राग-शिवरंजिनी |||
|| पञ्चतत्त्व नाम कीर्तन ||१०|| श्रीचैतन्य नित्यानन्द श्रीअद्वैत चन्द्र|| गदाधर श्रीवासादि गौर भक्त वृन्द|||| निताइ-गौर नाम कीर्तन ||११| निताइ निताइ निताइ निताइ निताइ निताइ निताइ हेगौर गौर गौर गौर गौर गौर गौर हे|||| महामंत्र ||१२|| हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरेहरे राम हरे राम राम राम हरे हरे|||

|| निवेदन प्रकाश ||||
|| राग-दरबारी |||
|| मनमोहन-छन्द |||| अवगुन गन जब जान परत | निज परछाईं करउ नसत || ||विश्राम|| || दोहरा-छन्द ||| वैष्णव जन की सूचि में हम न परैं हम नीचजैसे काग सुहाय ना सब हंसन के बीच||छन्द काव्य रचना कठिन मात्रा बरन विधानसो उर में आवे नहीं मूरख हम को जान|| एकल गुन इन छन्द में गौर-निताई नामपद-पद के पग-पग सजे भक्तन को सुखधाम||नित्यानंद प्रताप ते हम चालीस बखानलक्ष कोटि हम ते अधिक हैं कविभक्त सुजान|||

|| प्रयोजन प्रकाश ||||
|| राग मालकोंस |||
|| मधुभार-छन्द |||| गूढ़ इक काज | शबद लै साज | छुपे नट राज | चीन्ह सुसमाज || ||विश्राम|| कृष्ण अवतारचीन्ह जग सारकृष्ण बलरामसुनैं सब नाम||वेद परमानकरैं गुनगानसुनैं सब लोकभजैं तज सोक||गौर भगवानकृपा परवाननाम परचार|छन्न अवतार||सबै गुन खानकोउ नहि जानचीन्ह नहि लोकरिदै बर सोक||कृष्ण पद दासकरै परकाससोकहिं निवारग्रन्थ प्रकटार|||

|| निरूपण प्रकाश ||||
|| राग देस |||
|| कुण्डलिया-छन्द ||| ब्रज अवधी रचना करी टीका सरल बनायबृहद ग्रन्थ नाही कियो सब जन सुखहिं बुझाय||सब जन सुखहिं बुझाय गौर जू को आराधेंपंचतत्त्व को जान प्रेम से सेवें साधें||कलि महि जो ना चीन्ह गौर रस को नौ नवधीतिनि कारन रच दीन्ह कथा हिंदी ब्रज अवधी|||
|| राग देस |||
|| दोहरा-छन्द |||| द्वादस छन्द प्रकास हैं ग्रन्थहिं खंड विधानपंचतत्त्व परकासिहैं द्वादस सूर्य समान||||विश्राम|| || रोला-छन्द ||| सूरज को परकास सबै लोकन हित को हैऐकस सब को देत भेद नाहीं किछु को है||तैसे ही यह ग्रन्थ सबै सुभ चिन्तन साधेगौर प्रेम को देत कटैं माया के बाधे|||

|| समर्पण प्रकाश ||||
|| राग दरबारी |||
|| दोहरा-छन्द ||| हरि पद ते गंगा भयो तिस जल पुनि अभिसेकजो संतनि मुख हम सुनौ निज मति करयो लेख||सोहि ग्रन्थ अरपन करूं वैष्णव कर-कमलारयही आस हरिगौर जस फैले सब संसार|||

|| गौरांग चालीसा प्रकाश ||||
|| राग रागेश्री |||
|| रोला-छन्द |||  परथम तत्त्व बखान सदा गौरांग कहायेंभक्त रूप भगवान छन्न अवतार कहायें||| ||विश्राम|| || चौपाई-छन्द ||| जय जय गौर प्रेम अवतारीजय जय कीर्तन नाम बिहारी||जय जय गौरकृष्ण पर-ईश्वरजय जय रसिकनि को आधीश्वर||जय जय जय अवतारिन आकरउन्नतोज्जवल प्रेम प्रदाकर||बहु कारन प्रभु प्रकट भयहु हैंचार बहिर यह सन्त कहहु हैं||प्रथम बाह्य कारन बतलावेंसो सब वैष्णव वेद सुनावें||चार युगन के भिन्न धरम हैंसो युग महि सो धरम परम हैं||सत तरहीं हरि ध्यान प्रभाऊत्रेता बहु बिधि यज्ञ कराऊ||द्वापर मंदिर अर्चन करहींकलिहिं नाम कीर्तन सों तरहीं||कलिहिं धर्म संस्थापन करिहैंकृष्ण गौर सुन्दर बन परिहैं||दूसर प्रभु अद्वैत पुकारेतीसर निज प्रण सत करिवारे||१०चौथा अब हम कारन कहिहैंसुन सब सज्जन चित्त लगहि हैं||११द्वापर सह परिकर प्रभु आवहिंलीला अन्तरंग प्रकटावहिं||१२सो सब ही के चित्त न आवहिंश्री-बिरिंचि-शिव पार न पावहिं||१३सो कारन ब्रजभाव अभावासर्व प्रबेस मिलहिं नहिं पावा||१४|सो हि प्रबेस सुगम करवावहिंकृष्ण गौरसुन्दर बनि आवहिं||१५जो ब्रज प्रेम आच्छादित रहहुसबै जग तिस सों वन्या करहु||१६अन्तरंग कारन तिस तीनासब वैष्णव ह्रदयन्तर चीना||१७सब अवतार कृष्ण अवतारातिस महि प्रेम प्रकास अपारा||१८|तिस महि ब्रज लीला अति न्यारीतिस पुनि श्रीजू सखियन प्यारी||१९प्रथमहु कारन अब हम कहिहौंबरनन को तिनि किरपा चहिहौं||२०श्री राधा को प्रणय अपारातिस को महिमा अपरम्पारा||२१तिस को चीन्ह हेतु मन माहींश्रीहरि गौरदेव बनि जाहीं||२२दूसर कारन अब हम बरनौंतिस बरननि को गहि तिन सरनौं||२३श्री जू जे गुन पान करहि हैंसो गुन को के रसन परहि हैं||२४तिन गुनगन उर जानहिं भावेकृष्ण गौरसुन्दर बनि आवे||२५तीसर श्री गुन पान करहिहैंतब कैसो अनंद मन लहिहैं||२६सो अनंद हरि सदा तकहि हैंकृष्ण रूप नहि पान सकहि हैं||२७क्योंकी प्रेम विषय हरि रायेआश्रय श्री जू अंतरि माये||२८श्री कउ बरन-भाव-मन लहिहैंनिज परिकर सह पान करहिहैं||२९सो रस हरिजू पान करय हैंताते श्याम गौर बनि जय हैं||३०हरि कलि छन्न रूप अवतरि हैंतिसते ‘त्रियुग’ भागवत करि हैं||३१बंग महि नवद्वीप सुधामाता महि प्रकट गौर गुन धामा||३२सदा सदा नामहि रस बरजैताल मृदंग मेघ सों गरजै||३३म्लेच्छ यवन चंडाल पतित जोसब पावैं हरिप्रेम रतन सो||३४पुनहि प्रभु सन्यास को लयहैंजगन्नाथ पुरि हरि जू अयहैं||३५कीर्तन करहीं नृत्य निरंतरकंप-स्वेद-अश्रहु दृग अंतर||३६ऐसो पूर्व प्रेम नहि गोचरजैसो दइहु गौर किरपा कर||३७गौर कथा सुनहू हे भाईपसु-खग-ब्रिच्छ गलित उर जाई||३८गौरहि गीत गौर गुन गानागौर गौर गावहु गुन गाना||३९गौर कथा दै प्रेम अपारीपुनि पुनि पुनि जइहौं बलिहारी||४०|

|| राग दरबारी |||
|| मनहरण घनाक्षरी छन्द ||| ऐसो कोनो जीव गौर कथा सुनि रोवै नाहीं रोवै न खगान उरै कोनो आसमान हैहाय सखा मेरो हियो बर ही कठोर न ते कथा सुनै गरै नाहीं ऐसो को पाहान है||गौरांग चालीसा यह गौर तत्त्व युक्त भई ‘कृष्णदास’ गौर करें ब्रज प्रेम दान हैपरम पुरुसारथ ताते लघु चार अर्थ ऐसो गुरुतम तत्त्व को ये महागान है|||

|| नित्यानन्द चालीसा प्रकाश |||
|| राग यमन |||
|| रोला-छन्द ||| दूसर तत्त्व बखान कहायें नित्यानंदा|   भक्त स्वरूपहि जान सदा हैं परमानंदा||||विश्राम|| || चौपाई-छन्द ||| जय बलराम अभिन्न निताईजय जाह्नवा पतिहिं प्रभुराई||जय जय सेवक-विग्रह रूपासेव्य-गौर को दास अनूपा||जय जय नित्य गौर कउ संगीसेवहिं गौरहु नाना रंगी||गौर-कृष्ण अवतारिन आकरआदि पुरुस विस्तार प्रभाकर||| 'स्वयं-रूप' –असि बेद बखानेसोहि अभिन्न 'स्वांशउपजाने||प्रथम  अभिन्न रूप बलरामहिसेवक-सेव्य– एक भगवानहि||नाम-रूप को भेद द्विरूपाअन्यथा एक तत्त्व अनूपा||रूप विखंडित कबहु न ह्वै हैंसच्चिदानंद– बेद कहै हैं||नित्यानंद विविध कर रूपाप्रकटहिं रूप अनंत अनूपा||धाम सिंहासन पद कउ चौकीमुकुट ब्रिच्छ उपकरन अलौकी||१०सोहि राम निज रूप कु लेवहिंसोहि राम प्रभु जू कै सेवहिं||११सोहि प्रथम चतुर्व्यूह रूपाकरैं विस्तार बहु बिधि रूपा||१२पुनि हरि कोटि चतुर्भुज रूपासजहिं बैकुंठ दिव्य अनूपा||१३द्वितीय चतुर्व्यूह सो लेवहिंसबहि रूप ते हरि के सेवहिं||१४तिनि ते प्रथम पुरुस अवताराकारन जलनिधि कीन्ह पसारा||१५कोटि कोटि ब्रह्माण्ड अपारासोही रोम छिद्र उपजारा||१६दूसर ब्रह्म अण्ड के भीतरगर्भोदक निधि शयन निरंतर||१७तिनि ते प्रथम जीव उपजहिहैंतिनि हि 'बिरंचि'– बेद असि कहिहैं||१८तीसर पुरुस सबै घट भीतरक्षीरोदक निधि शयन निरंतर||१९जब जब हरि जू लैं अवतारातब तब सेवक रूप तोहारा||२०त्रेता राम रूप अवताराअनुज भ्रात को रूप उपारा||२१द्वापर प्रकटहि निज भगवानासखा-भ्रात को रूप उपाना||२२कलिजुग प्रथम चरण जब पावहिंसो ही कृष्ण गौर बनि आवहिं||२३कृष्ण अवतार गौर न भाईएकहु तत्त्व जानिहौं ताई||२४श्री को भावास्वादन हेतूनामहिं कीर्तन वितरण हेतू||२५कृष्णहु धरैं गौर अवताराबंग महि नवद्वीप पधारा||२६तबहीं राम निताई रूपा| 'एकचक्रप्रकटहहिं अनूपा||२७ताल-मृदंग-झांझ बजवानालीला के उपयोगी नाना||२८नित्यानंद सबहि कउ साहिबलीला हेतु रूप लै आहिब||२९शक्ति: शक्तिमतोर अभेदाकहहिं सुनहिं असि संतन वेदा||३०तिनि की शक्ति अनंग-मंजरीरास केलि में रास सहचरी||३१तिनि की कृपा बिनहु हे भाईराधा-कृष्ण मिलहु के नाई||३२नामी नाम भेद किछु नाहींगौर-निताइ जानिहौं ताहीं||३३कृष्ण नाम अपराध विचारेगौर-निताइ नाम सब तारे||३४जद्दपि गौर महा किरपालासब को प्रेम देहिं सब काला||३५जिनको गौर कृपा ना मिलिहैंताहि निताइ प्रेमरस दिलिहैं||३६सो साहिब सबहिं ते कृपालातारहिं म्लेच्छ यवन विकराला||३७नित्यानंद ऐसहहु साहिबसेवक-सेव्य रूप धरि आहिब||३८सेवक रूपे हरि जू सेवहिंतिनि कहु जीव सेव्य कर सेवहिं||३९मम साहिब जी गौर दास हैंदास रिदै बस यहहि आस हैं||४०|
|| राग दरबारी ||||
|| मनहरण घनाक्षरी छन्द |||| जगाइ मधाइ तोपे मटुकि लै मारि दइ सों को तुमि तारि दियो गौर प्रेम दान हैमो सो खल कामी काहे भव मांही छाड़ि दइ मो सो तरै गौर जस गावैगो जहान है||चालीसा निताइ को ये अति अदभुत भई ‘कृष्णदास’ नित पाठ करें भाग्यवान हैंमहानाम महाबल महाप्रेम महोज्ज्वल महाकृपा महाकरें महिमा महान हैं|||

|| अद्वैत चालीसा प्रकाश ||||
|| राग जनसम्मोहिनी |||
|| रोला-छन्द ||| तीसर तत्त्व बखान सदा अद्वैत कहायेंजान भक्त-अवतार भक्त सब महिमा गायें||||विश्राम|| || चौपाई-छन्द ||| जय जय जय अद्वैत महेश्वरसुत कुबेर नाभा जगदीश्वर||जय जय जय हरि-हर अवतारासब दस दिसहु सुभक्ति प्रसारा||जय जय गौर प्रकट कारन कोजय जय कलिजन निस्तारन को||जय श्री-सीता पति गोसाईंतिनि किरपा मिलहैं हरि साईं||तिनि श्री हरि-शिव भिन्न न जानौंसो ‘अद्वैत’ नाम जग जानौं||निज आचरन भक्ति सिखलावहिंसो ‘आचार्य’ नाम सब गावहिं||कलि को प्रथम चरन जब कालाजग बिसरो हरिनाम रसाला||चतुर्चरन लच्छन दिसि दिसहूसब जग को हरिमाया ग्रसहू||तब कीन्हो प्रभु प्रन मन माहींकृष्णहि प्रकट करउ जग माहीं||हरि लैं गौर कृष्ण अवताराश्रीहरिनाम रसहिं परसारा||१०प्रभु तुलसी गंगा जल लैहैंसालिग्राम सेवाव्रत लैहैं||११कृष्ण कृष्ण हरि साहिब मोरेआवउ हरि सनाथ करि जोरे||१२सोहि सबद उच्चार करहि हैंब्रह्म अण्ड को भेद परहि हैं||१३भेद गयो बैकुण्ठ अनंताकृष्ण सुनहिं गोलोक सुकंता||१४तिस बाणी को साचि करन कोकृष्ण गौर बनि अयहिं धरन को||१५| ‘विश्वरूप’ हरिजू को भ्राताआचारज संग हरि गुन गाता||१६निस दिन गौर महाप्रभु अयहैंभ्राता भोजन हेतु बुलयहैं||१७प्रभु हरि जू को देख परहि हैंयह बिचार मन माहि करहि हैं||१८जब हम सोको दरसन करिहैंमम हिय को अति मोहित करिहैं||१९गौरहरि प्रभु मंद मुस्कानेमन बिचार करिहैं गुन खाने||२०तोर निमंत्रण धावत अयहौंसो तुम काहे बूझ न पयहौं||२१एकहु समय गौर हरिरायेसप्त प्रहर भावन प्रकटाये||२२सब भक्तन को निज अवतारादरसन दैहैं बहुत प्रकारा||२३सो आचार्य दिखावन हेतूकहु रामाइ बुलावन हेतू||२४सो सुनिहें सुधि दासहिं द्वारालुकिहैं जाय नन्द के द्वारा||२५तिनि प्रति प्रभु यह बैन उचाराहरि प्रति नाहिं करउ प्रकटारा||२६सो हरि पुनि आदेस करय हैंनन्दहिं सदन जाय लै अयहैं||२७प्रभु निज भगवत्ता प्रकटावहिंपार ब्रह्मता निज दिखलावहिं||२८षड भुज रूप सबै दिखलावहिंरूप चतुर भुज राम समावहिं||२९राम कृष्ण को रूप दिखावाविश्वरूप भक्तनि दिखलावा||३०लक्ष कोटि ऋषि मुनि जन देवाकरिहैं हाथ जोड़ प्रभु सेवा||३१लक्ष कोटि ब्रह्माण्ड अपाराहरि नाभिका माहीं पसारा||३२निज प्राकट्य कहहिं सब दीन्हींअद्वैतहु मम गोचर कीन्हीं||३३जब हरि जगन्नाथ पुरि आयेप्रतिहिं बरस दरसनि को धाये||३४सीता ठकुरानी कर रंधनपरसहिं हरि को बहु बिधि ब्यंजन||३५गौरहरि संग नृत्य करे हैंकंप स्वेद अश्रु जल झरे हैं||३६गौर प्रेम बस बाह्य न रहिहैंहंसहिं रोवहिं भूमि परहिहैं||३७सोही कृपा बिनहु हे भाईगौरहिं कृपा मिलहु के नाई||३८गौरहिं कृपा बिनहु हे बांधवसहज ना मिलहिं राधा-माधव||३९सीता अरु अद्वैत महेश्वरकरहु प्रनाम जान जगदीश्वर||४०
|| राग दरबारी ||||
|| मनहरण घनाक्षरी छन्द |||| याको प्रेम टेर सुनि गौर कलि माहि आये ऐसो सो सकति धारी कौन जग माये है|| कृष्ण नाम दान दैहैं जीव को गुमान लैहैं ऐसे वैसे जोहों सोहों पापी त्रान पाये है|अद्वैत चालीसा नीको सो ही सों अद्वैत भई तिनि कृपा ते अद्वैत भाव जाये धाये है| ‘कृष्णदास’ नाम रस बरसे दिसिहु दस कृपा आस दास लै के लीला जस गाये है|||

|| गदाधर चालीसा प्रकाश ||||
|| राग कलावती |||
|| रोला-छन्द ||| चौथे तत्त्व बखान गदाधर नाम कहायेंभक्त-शक्ति तिनि जान यश सरिता में नहायें||||विश्राम|| || चौपाई-छन्द ||| जय गदाधर माधव नन्दनहिंअभिनन्दन रत्नावती सुतहिं ||जय राधिका अभिन्न गदाईजय अभिन्न शक्तिहि हरिराई||जिन को भाव अनंत अपाराआस्वादन को हरि अवतारा||सोहि राधिका बनैं गदाधरगौर दास बन के अति सुन्दर||एक बार हरि सजिहैं धामासंग राधिका सब गुन धामा||श्री कहिहैं हरि सों मुसकानास्वप्न देखिहौं सुन्दर स्थाना||ब्रज महि जो किछु साजे जैसेसो तिस धामहि देखहिं तैसे||देखहिं विप्र एक अति सुन्दरमो सम भाव तिनहिं हिय अन्दर||जो केवल मम हियहिं रयो जूतिनि हिय कैसे प्रकट भयो जू||बरन हमारो रूप तिहारोमोर मुकुट बंसी ना धारो||१०रूप मोर के तोर रूप हैमिलित रूप के अन्य रूप है||११सो सुनि हरि मणि चालित कीनोगौर रूप कै दरसन दीनो||१२हरि कहिहैं यह रूप  हमारासब अवतारिन माहीं उदारा||१३तैं अरु तोर सखिन कै संगाशिक्षा लैहौं रस कै रंगा||१४सो कलि महि सबहीं निस्तारातो हिय लै तो भाव निहारा||१५श्री जू के उर भाव ग्रहन कोगौर बरन है गौरहिं तन को||१६राधा को सखि ललिता प्यारीरामानंद राय बनि आरी||१७तिनि सखि बरु हि प्यारी विशाखादामोदर स्वरूप रचि राखा||१८रागलेखा व कलाकेलि जूशिखि माहिती माधवी अलि जू||१९परिषद लै के साढ़े तीनागौरहरि श्रीकथा रस पीना||२०श्रीराधा सखि और मन्जरीप्राय सबहि बनि पुरुस अवतरी||२१यतिहि धर्म प्रभु पालन करिहैंनारि के संग कबहु न परिहैं||२२तिस घरि गदाधर नाहि आवैंसुनहु कारन सब चित्त लावैं||२३जे गदाधर तिस सदन रहिहोंप्रभु आस्वादन बिघन परहिहों||२४हरि सन्यासी बनि पुरि आवहिंप्रभु खेत्र सन्यास अपनावहिं||२५तिनकु गौर नित दरसन करिहैंनिस दिन हरिजस सरवन करिहैं||२६तिनसुं भागवत गौर सुनहिहैंकृष्ण कथा रस पान करहिहैं||२७जो बरननि गदाधरहु करिहैंहरिजू व्यास शुकादि न परिहैं||२८शुक प्रभु जिनको नाम लुकावहिंभगवत सोहि गदाधर गावहिं||२९एक समय श्रीगौरहु आयेश्रीगदाधरहिं बचन सुनाये||३०जो मम प्राननि को धन प्रानाअब तुम प्रति हम करहि प्रदाना||३१ऐसो कहि रज को बिलगावहिंगोपीनाथ तिसहिं दिखलावहिं||३२तिनहिं गदाधर सेवहि कैसेराखहिं नयन पुतलि को जैसे||३३एक दिनै गौरांग कृपाधरपुरि ते ब्रज को चलहिं दयाधर||३४गदाधरहि जो व्रत को सेवहिंतिनि व्रत को तब मान न देवहिं||३५पाछे पाछे हरि कै धावैंहरि तिस व्रत को स्मरन दिलावैं||३६प्रभु कहे ऐसो व्रत जे कोटितबही छाड़ि दैहैं बहु कोटि||३७नयन अगोचर हरि निज कीन्हीतिनि बियोग अति पीड़ा दीन्हीं||३८तिस एकादस माहहिं कालानिजहिं अगोचर करहिं कृपाला||३९गौर गदाधर महिमा भारीतिनि जस पे जइहौं बलिहारी||४०
|| राग दरबारी |||
|| मनहरण घनाक्षरी छन्द |||| जिनि कै हिय में ऐसे ऐसे हाव भाव सजैं हरि हू को तिनि भाव बूझ नाहि परे हैंऐसो श्रीराधिका न्यारी हरि जू को अति प्यारी गदाधर रूप लै के धरा अवतरे हैं||गदाधर चालीसा सो अति अद्भुत भई जेई पाठ करे काल त्रास नाहिं परे हैं| ‘कृष्णदास’ तिनि रति प्रेम गति गूढ़ अति मेरो मति लघु अति बूझ नाहीं परे हैं|||

|| श्रीवास चालीसा प्रकाश ||१०||
|| राग गौती ||||
|| रोला-छन्द ||| पंचम तत्त्व बखान नाम श्रीवास कहायेंशुद्ध-भक्त तिनि जान भक्त सब वंदन गायें||||विश्राम|| || चौपाई-छन्द ||| जय जय श्रीवासहिं प्रभु जय जयजलधर पंडित नंदन जय जय||जय जय जय नारद अवतारासुंदर गौर सुभक्ति प्रसारा||जो नारद वीणा वादन रतसो श्रीवास प्रभुहि बनि बिचरत||प्रभु श्रीवासहिं पण्डित जय जयहरि धाय मालिनी को जय जय||गौरकृष्ण जब परगट होवहिंमालिनी तिनि धाय बनि आवहिं||हरि ह्वैं जू जब बालक रूपातिनि मालिनी साजहिं अनूपा||पर्वत मुनि जिनि वेद पुकारहिंसो श्रीराम भ्रातु बनि आवहिं||नित्यानंद बंग जब आवहुश्रीवासहिं गृह माहि रहावहु||तिनि कु मालिनी पुत्रहिं मानैंतिनि अंचल प्रभु मातहिं जानैं||गौर प्रथम परकास कियो हैतिनि प्रभु के ही सदन भयो है||१०निशा काल प्रति घर इन्ही कोगौर करैं कीर्तन हरि ही को||११तिन्ही घर नारायणी कन्यागौर करि तिनि प्रेम सों वन्या||१२तिनहि जयो वृन्दावन ठाकुरलिखिहु भागवत प्रभु-प्रेमान्कुर||१३एक बार प्रभु भक्तन संगाकरि बहु विधि संकीर्तन रंगा ||१४वासहिं पुत्र तबहि तिस कालाछाड़ि दई स्वासन की माला||१५नारी गन जब रोवन लागीतिनि प्रभु बैन उचारन लागी||१६गौर प्रभु अभी नृत्य करत हैंतैं रोदन सों बिघन परत हैं||१७सोहि भांति जे रोदन करिहौंनिज प्राणनि जावहिं दै धरिहों||१८नृत्य गौर सुन्दर प्रभु करिहैंकी कारन रस थिर नहि परिहैं||१९जब चीन्हें प्रभु पुत्र गयो हैक्रंदन सबही ओर भयो है||२०गौर प्रेमबस क्रंद कियो हैतिनि सेवा महिमण्ड कियो है||२१मो कारन ना करहिं प्रकासाके बिधि छाड़हु तैं श्रीवासा||२२गौर जीव को पुनहि बुलावहिंमृत सरीर महि जीबन आवहिं||२३सो पूछहिं के काज पठायोतोर नियम पालनहिं पलायो||२४सब जीवहिं के प्राण नाथ होनित सम्बन्ध तुम के साथ हो||२५सो सम्बन्ध जीव बिसरे हैंजन्म मरण को पुनि पुनि परे हैं||२६औरन सों सम्बन्ध जयो जूअन्तकाल को नष्ट भयो जू||२७ऐसो कहि के जीव पठायोतिस सुनि के उर ममता जायो||२८हरि कहि तिनि मृदु सुन्दर बानीनिज सुत आपनि हम कउ जानी||२९हरि वासहिं को यह वर दीनैउदर भरै जे ना किछु कीनै||३०मम प्रताप कारन तिन तबहींजो चहिहौं सो पावहिं सबहीं||३१श्रीवासनि आँगन हरि रायेनिज अवतारनि लै प्रकटाये||३२राम-सिंह-वाराह रसालाप्रकटहिं सप्त प्रहर तिनि काला||३३श्रीवासहिं सेवा के फलसोंतिनि सेवक देखहिं अचरजसों||३४सब सेवक गंगा जल लइहैंहरि जू को अभिसेक करइ हैं||३५तिनि सेविका ‘दुखी’ असि नामाकरिहैं सेवा सुन्दर कामा||३६कहन लगे हरि सुन्दर बचनामो सेवक नहु दुख मम रचना||३७तिसि कारन कै गौर दयानिधिनाम ‘सुखी’ यह दीन्ह कृपानिधि||३८जब हरि जगन्नाथ पुरि आयेतिनि दरसनु प्रति बरसहिं आये||३९प्रभु श्रीवास मालिनी चरनासो जहाज हैं भव को तरना||४०
|| राग दरबारी |||
|| मनहरण घनाक्षरी छन्द |||| नारायण नारायण हरि नाम परायण वीणा वादन गायन गुरु सो महान हैंपञ्चरात्र भक्तिशास्त्र प्रकट कियो है जिनि सो नारद ही श्रीवास गौर के परान हैं||श्रीवास चालीसा यह भक्त कथा युक्त भई भक्त गुन गान हरि गान ते महान है| ‘कृष्णदास’ वर चाहे रसना सदा ही गाये भक्त गुनगान जब निकसे परान हैं|||

|| उपसंहार प्रकाश ||११||
|| राग मालकोंस |||
|| भुजंगप्रयात-छन्द ||| परेशं करन्तं न जाने परन्तं || ||विश्राम|| अमाया अकारंनमस्ते सकारंअमाया हि नामंनमस्ते सुनामं||अजन्मा अनादिंशची के सुतादिंरहिन्तं उपाधिं | नम: ते उपाधिं||अमाया हि धामंनमस्ते सुधामंअमाया हि भेशंनमस्ते सुभेशं||नमस्ते अकालंमहाकाल कालंनमस्ते अकामंसुसेवं सुकामं||सुनामं प्रचारंकृपा नाहि पारंसदा निर्विकारंसुसत्त्वं विकारं||अकृष्णं हि कृष्णंमुकुन्दं हि तृष्णंमहाभाव धारंकृपालं अपारं||गुणागार धारंगभीरं अपारंअखण्डं अगारंअकिन्चन् दतारं||सुतत्त्वं वितत्त्वंअनाधीन तत्त्वंप्रणामं प्रणामंप्रणामं प्रणामं||
|| राग देस |||
|| दोहरा-छन्द ||| रूप न रंग न रेख किछु जिम प्रकाश कहिलान | सो सूरज साकार ते उपजै यह जग जान ||विश्राम || रूप न रंग न रेख किछु निराकार जो ब्रह्म | सो उपजै साकार ते कृष्ण रूप परब्रह्म ||मूल शबद आकार है निराकार है नाय | निर लागे आकार ते तबहि शबद बन पाय ||मूल रूप साकार है निराकार है पक्ष | सदगुरु ऐसा ज्ञान दे वेद-शास्त्र में दक्ष ||निराकार वो है सदा व्यक्ति-भाव को लेत| बहुत लोग यह कहत हैं मन्दबुद्धि के हेत|||मन्दबुद्धि नहि जानते परम भाव साकार | अव्यय अविनाशी सदा सर्वोत्तम दातार||कृष्ण-रूप हि समग्र है तिसमें सब मिल जाय | सब रूपन को बीज है इसमें संशय नाय ||निराकार सब ही कहें पर न जानैं भेद | निराकार इक पक्ष है गावैं गीता वेद |||
|| राग रागेश्री |||
||सिद्धांत-गीत|||| तत्त्व को पा जाएगा दशमूल के सिद्धांत सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से|||| ||विश्राम|| ये प्रथम सिद्धांत है कि वेद ही प्रमाण हैवेद और पुराण आदि शब्द-ब्रह्म महान हैं||| ये अनादि-अपौरुषेय सत्य हैं ये सर्वदाजो इन्हें नहीं मानता वो नास्तिक हैं सर्वदा ||| सत्य को है जानना तो जानिये वेदांत सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से||दूसरा सिद्धांत है कि कृष्ण ही परमेश हैंदेवों के आदि हैं वे सर्वेश हैं अखिलेश हैं||| ब्रह्म के परमात्मा के मूल कारण हैं सदाकारणों के मूल कारण सर्वकारण सर्वदा|| वेद के प्रतिपाद्य हैं साकार हैं चिदाङ्ग सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से|||| तीसरा सिद्धांत है हरि सर्व-शक्तिमान हैंचिततटस्थाबहिरंगा शक्ति के आधान हैं||| चिज्जीव-जड़ आदि इन तीनों का ही ये कार्य हैअघट-घटन-पटीयसी से सृष्टि में सब धार्य है||८| घट नहीं सकता है वो घट जाए शक्ति-कान्त सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से|||| चौथा ये सिद्धांत है कि कृष्ण रस-आगार हैंरस स्वयं हैं रस-रसिक हैं रस के पारावार हैं||१०| हैं यही रस-शिरोमणि रस-राज रस के सार हैंजिन रसों का पान करते हैं वे पञ्च प्रकार हैं||११| दास्यसख्यवात्सल्य और मधुरशान्त सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से||१२|| पांचवां सिद्धांत है कि जीव हरि के अंश हैंतटस्था शक्ति से प्रकटित चिद्स्फुलिङ्ग चिद्वंश हैं||१३| अंश हैं ये इसलिए अणु-धर्मता के वश्य हैंचिद्वणु हैं इसलिए जड़-द्रव्य से नहीं नश्य हैं||१४| कुछ हैं माया-वश अशांत कुछ हैं मुक्त-शान्त सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से||१५|| ये छठा सिद्धांत है जो जीव मायाधीन हैंवे अनादि-कर्मवश जड़-कर्म में ही प्रवीण हैं||१६| कृष्ण से सम्बन्ध उनको नहीं कदापि स्फुरित हुआनाम रस से चित्त उनका नहीं कदापि द्रवित हुआ||१७| फिरते हैं संसार में चिर-काल ही दिग्भ्रांत सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से||१८|| सातवां सिद्धांत है कुछ जीव माया-मुक्त हैंचिज्जगत में विराजते हरि-प्रेम से वे युक्त हैं||१९| इनमें कुछ हैं नित्य सिद्ध और कुछ कृपा से सिद्ध हैंकुछ ने की है साधना निज भक्ति से वे सिद्ध हैं||२०| सेवा के सुख से आनंदित रहते हैं बड़े शान्त सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से||२१|| आठवां सिद्धांत है जो जीव बद्ध या मुक्त हैंवे विभु होते नहीं अणुधर्म से नित-युक्त हैं||२२| मुक्त होने पर भी वे बस जीव रहते हैं सदापरब्रह्म से मिल के वो परब्रह्म नहीं होते कदा||२३| स्वरूपत: वे भिन्न और अभिन्न हैं श्रीकांत सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से||२४|| नौवां यही सिद्धांत है शुद्धभक्ति ही अभिधेय हैवेदों के द्वारा प्रमाणित उच्चतम ये प्रमेय है||२५| अन्य अभिलाषिता-शून्य ज्ञान-कर्म-अनावृतम्भाव में अनुकूल है श्रीकृष्ण के अनुशीलनम्||२६| उच्च है ये कर्म-ज्ञान-मिश्र के तुलनांत सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से||२७|| दसवां ये सिद्धांत है हरिप्रेम ही बस ध्येय है|पुरुषार्थ पञ्चम यही शुद्ध-भक्ति से ही विधेय है||२८| धर्मअर्थकाममोक्षादि जो भी पुरुषार्थ हैकृष्ण इनके वश नहीं हैंप्रेम ही परमार्थ है||२९| ये ही भक्ति का प्रयोजन है श्रीराधाकान्त सेसब समझ में आएगा दशमूल के सिद्धांत से||३०|| दशमूल सिद्धांत ये गौरांङ्ग ने हमको दियाश्रीजीव गोस्वामी ने इसे उजागर कर दिया||३१| जीवन सार्थक कर दिया दशमूल के सिद्धांत सेतत्त्व को मैं पा गया दशमूल के सिद्धांत से||३२| सब समझ में आ गया दशमूल के सिद्धांत से|| सब समझ में आ गया दशमूल के सिद्धांत से||३३||
|| राग रागेश्री |||
|| दोहरा-छन्द ||| जन्म कर्म सब दिव्य हैं गूढ़ तत्त्व जे जानअन्त हरि घर जायेंगे पुनि भव में नहि आन||||विश्राम|| || कुण्डलिया-छन्द ||| सूरज जो आराधि हैं पर खण्डैं आकार| ‘कृष्णदास’ सोहि जन को बिरथा यह व्यौपार||बिरथा यह व्यौपार जोहि जन हरि आराधैंपर उदार-हरिरूप गौर सेवैं नहि साधैं||कृष्ण माधुरी रूप ज्यों सूरज अति हि दूरजगौर उदार सरूप ज्यों उपजै रश्मि सूरज|||
|| श्रीराग ||५|
|| कुण्डलिया छंद ||१| जीवन गया शराब में खाए खूब कबाब| फुर्सत नहीं शबाब से मर के मिले अजाब ||| विश्राम || मर के मिले अजाब दलन यमराज करेगा| सुख भी यह स्थिर नाहिं ह्रदय ग्लानि से भरेगा||| ज़रा गौर से सेव गौर-हरि नाम रसायन | जप ले निताइ-नाम सुधर जाएगा जीवन |||
|| राग मालकोंस |||
|| मनमोहन-छन्द ||| काज कठिन पर परम धरम | जो करिहैं सो पाव परम|||विश्राम|| कथा भागवत प्रेम सदनवैष्णव जन को जीवन धनकृष्ण कथा जो दान करनसो वैष्णव को सदा नमन||कृष्ण कथा सब जीव बुझलसो प्रचार अरु गान सरलगौर कथा रस प्रेम तरलसो प्रचार अति कठिन प्रबल||प्रबल कठिन जे जानि करनगौर कथा सब जीव प्रदनसो उदार सब जीव जगत| ‘गौड़ीय’ जान करहु प्रनत||
|| राग मेघ मल्हार |||
|| मनोरम-छन्द ||| कारे बदरा घननेघंछाये उमड़ घुमड़ मेघंलायें जलनिधि भर नीरंलोक भयो रस रस पीरं||बादर गजगं गज गाजंदामिनि करड़ं कड़ काजंलोकहु जागं सुन गाजंकुक्कुर दुष्टं दल भाजं||भीजं रीझं सब लोकंशुष्क थलं सब तज शोकंधीर समीरं सननानंशीतलं बहे सब थानं||नीर कमल दल भर साजंनृत्य मयूरं कर काजंकृष्ण दास यह रस रागंगाय भाग तिनि के जागं||
|| राग यमन |||
|| हरिगीतिका-छन्द ||| कृष्ण को भजते हैं सभी पल ‘कृष्ण’ बरनहि गात हैंसंग में अंग उपांग अस्तर पारसद लै आत हैं||नाम को कीर्तन जो करे हैं गौर बरन सुहात हैंगौर भजे हैं सो मेधावी बुद्धि युक्त उदात हैं||जैसे भोजन ग्रास ते तुष्टि पुष्टि बढ़हि क्षुधा नसैगौरहरि गुन-नाम जो भजते तिनि स्वरूप सहज रसै||कृष्णहिं नाम-धाम प्रेम-रूप रसानंद सिन्धु रहैंजगत के नहीं व्यापहिं विषयन सोहि उर बिलगै रहैं||
|| राग देस |||
|| छप्पय-छन्द ||| गौरकथा परकासरूप जो ग्रन्थनि सेवैजान लहैंगे गौर दास यह आस करेवै||गौर कथा को जान काज बस गौर भजन हैभजन यही नित नाम ग्रन्थ का पाठ मनन है||ऐसो कहि कर गौर को सार कथा सिर-मौर को| ‘कृष्णदास’ रसखान को शेष करै इस गान को|||

|| फलश्रुति प्रकाश ||१२||
|| राग ललित |||
|| सवैय्या-छन्द ||| सहारी तुमारी मुरारी करैंगे ||विश्राम|| गवैंगे गुनैंगे स्मरैंगे सुनैंगे पढ़ैंगे लिखैंगे जपैंहू करैंगेजतावैं जपावैं बतावैं बुझावैं सबै को सुबानी सुदानै करैंगे||होय सकाम करैं यदि सेवन सो हरि जू परवान करैंगेअन्त सुखन्त भजन्त तरन्तहिं सो जग में उपरन्त रहैंगे||जो निरकाम करैं यदि सेवन सो हरि सेव सुकाम वरैंगेआकर मूल सुधर्म दिवाकर सो जन के उर प्रान बसैंगे||सो जन की हरि लाज रखैं नित नाहि कबै जमफास परैंगेकृष्णहिं दास यही पद गावहि सो हरि प्रेम प्रकास करैंगे|||